UDAIPUR

महाराणा कर्णसिंह सिंह की 440वी जयन्ती मनाई

Udaipur . महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन Udaipur की ओर से मेवाड़ के 56वें एकलिंग दीवान महाराणा कर्ण सिंह की 440वी जयंती मनाई गई. कुँवर कर्ण सिंह का जन्म श्रावण शुक्ल द्वादशी, विक्रम संवत 1640 को हुआ था.

इस अवसर पर सिटी पैलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में मंत्रोचारण के साथ उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर दीप प्रज्जवलित किया गया. सिटी पैलेस भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों के लिए चित्र सहित ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई.

महाराणा मेवाल चैरिटेबल फाउण्डेशन, Udaipur के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि कुँवर कर्ण सिंह, महाराणा अमर सिंह प्रथम के सबसे बड़े पुत्र थे और उनकी मां का नाम साहेब कुंवर था. 1620 ईस्वी में, कुँवर कर्ण सिंह महाराणा अमर सिंह के उत्तराधिकारी बने. हालांकि, महाराणा अमर सिंह के शासनकाल के दौरान ही कुँवर कर्ण सिंह ने प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग करना शुरू कर दिया था.

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उन्होंने अपने पिता महाराणा अमर सिंह प्रथम के साथ कई लड़ाइयां लड़ी. हालांकि, वह मेवाड़ की दुर्दशा के बारे में बहुत चिंतित थे. अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने मुगलों के साथ राजनयिक संबंध बनाए . मुगलों के साथ संधि के बाद मेवाड़ में स्थिति शांतिपूर्ण हो गई. महाराणा कर्ण सिंह ने भी अपने समय का उपयोग प्रशासनिक, न्यायिक और आर्थिक सुधारों के प्रयास में किया. उनके प्रयासों के कारण, मेवाड़ के व्यापार केंद्र फिर से फल-फूल रहे थे.

महाराणा कर्ण सिंह ने राजकुमार खुर्रम (बाद में शाहजहां) को Udaipur में शरण दी, जब खुर्रम ने 1622 ईस्वी में अपने पिता जहांगीर के खिलाफ विद्रोह किया. महाराणा कर्ण सिंह ने खुर्रम का आतिथ्य स्वागत किया. अच्छे संबंधों को बनाए रखने के लिए महाराणा और खुर्रम ने मित्रभाव के साथ अपनी पगड़ी का आदान-प्रदान किया. खुर्रम लगभग चार महीने तक मेवाड़ में रहे, उसके बाद वह दक्कन लौट गया.

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नाडोल का मुगल सेनापति; गज़नी खान ने रणकपुर जैन मंदिरों सहित गोडवार के कई मंदिरों को नष्ट कर दिया. 1621 ईस्वी में महाराणा ने जैन भिक्षु विजयदेव सूरी के अनुसार रणकपुर जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया.

राजप्रशस्ति महाकाव्य के अनुसार महाराणा कर्ण सिंह ने अपने महाराज कुमार काल में गंगा नदी के तट पर Silver का तुला-दान किया था. Udaipur के राजमहल में अधिकांश निर्माण महाराणा कर्ण सिंह द्वारा करवाया गया – माणक चौक, पायगा पोल, सूरज पोल, तोरण पोल, मोती चौक, सता नवरी पायगा, गणेश चौक, गणेश ड्योढ़ी, चंद्र महल, लखू गोखड़ा,  करण महल, दिलखुशाल महल, मोती महल और भीम विलास का 1 भाग, माणक महल, मोर चौक, सूर्य चोपड़, सूर्य गोखड़ा, नाव घाट, जनाना महल, लक्ष्मी चौक और जनाना ड्योढ़ी.

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चित्तौड़गढ़ के रामपोल शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1678 में, महाराणा कर्ण सिंह ने रोहड़िया बारहठ लाखा को तीन गांवों की जागीर प्रदान की. मार्च 1628 ईस्वी में महाराणा का असामयिक देहावसान हो गया.

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