नई दिल्ली (New Delhi) . कोरोना (Corona virus) संक्रमण बच्चों में काफी लंबे समय तक टिक सकता है. बच्चों के शरीर में कोरोना जनित कई समस्याएं वयस्कों की तुलना में ज्यादा दिनों तक रह सकती हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना संक्रमण की वजह से बच्चों को ज्यादा दिक्कत हो सकती है.
इटली के रोम में किए गए एक सर्वेक्षण के विश्लेषण के आधार पर यह दावा किया गया है. अध्ययन में सामने आया है कि बच्चों के लिए कोरोना संक्रमण ज्यादा खतरनाक है. बड़ों को जब कोरोना संक्रमण होता है, तो उनके शरीर में बीमारी के बाद किसी एक तरह की समस्या ज्यादा दिनों तक बनी रहती है. ऐसा संक्रमित लोगों में से 76 फीसदी बड़ों के साथ होता है. इन संक्रमित लोगों को छह महीने बाद भी किसी न किसी तरह की समस्या रहती है. बच्चों में यह ज्यादा दिनों तक टिक सकती है.
इटली के रोम शहर में शोधकर्ताओँ ने कोरोना से संक्रमित बच्चों का ख्याल रखने वाले 129 लोगों का सर्वे किया. इसमें पूछा गया था कि क्या बच्चों में कोरोना या उससे संबंधित लक्षण ज्यादा दिनों तक रहते हैं, तो पता चला कई तरह के लक्षण बच्चों में छह महीने से ज्यादा समय तक मिले. ये सारे मरीज 18 साल से कम उम्र के थे. कोरोना से संक्रमित बच्चों का ख्याल रखने वालों से रेस्पाइरेटरी, थकान, नाक बंद होना, मांसपेशियों में दर्द समेत अन्य लक्षणों के बने रहन से संबंधित सवाल पूछे गए थे.
सर्वे में सामने आया है कि 50 फीसदी बच्चों के चार महीने या उससे ज्यादा समय तक कोरोना का कोई न कोई लक्षण जारी रहा. जबकि, 22.5 फीसदी बच्चों में कोरोना संबंधित समस्याओं के तीन या उससे ज्यादा लक्षण दिखाई पड़े. इतना ही नहीं, अध्ययन के मुताबिक जो बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए थे, उन्हें भी कई महीनों तक कोरोना संबंधी दिक्कतें दिखाई पड़ी. जब कोरोना महामारी (Epidemic) अपने सबसे गंभीर स्थिति में थी, तब एसिम्पटोमैटिक रूप से संक्रमित बच्चों में से 42 फीसदी बच्चों को ठीक होने के बाद भी कई महीनों तक कोरोना संबंधी दिक्कतों के लक्षण दिखाई दे रहे थे.
इस अध्ययन को करने वाली संक्रामक रोग विशेषज्ञ और सिएटल चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल की फीजिशियन डॉ डेनिएल जेर ने बताया कि मुझे रिपोर्ट के डेटा डराते हैं, मैं इन्हें सबके सामने लाने से डर रही थी. क्योंकि ये दुनिया भर के लोगों को चिंता में डाल देगा. कोरोना संक्रमित बच्चों में सबसे ज्यादा लंबे समय तक रुकने वाली दिक्कत है नाक का जाम होना या बंद होना. जहां तक बात रही थकान का पता करने का तो इसमें समय लगेगा, क्योंकि बच्चे बीमारी से उठते ही काफी एक्टिव हो जाते हैं. डॉ डेनिएल जेर कहा कि यह बेहद छोटे आकार का सर्वे था.
ज्यादा सटीक जानकारी के लिए हमें या दुनिया के अन्य वैज्ञानिकों को बड़े पैमाने पर सर्वे या स्ट्डी करना होगा. सिनसिनाटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल बच्चों की संक्रामक रोग एक्सपर्ट लारा डैनजिगर इसाकोव ने बताया कि स्टजी का प्राइमरी डेटा तो सही लगता है, लेकिन इसे और पुख्ता करने के लिए और बड़ी स्टडी की जरूरत है. लारा डैनजिगर इसाकोव ने कहा कि इस समय कोई भी यह दावा नहीं कर सकता वह लंबे कोरोना संक्रमण के बारे में सटीक जानकारी देगा.