Udaipur . महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, Udaipur की ओर से मेवाड़ के 63वें एकलिंग दीवान महाराणा प्रतापसिंह (द्वितीय) की 299वीं एवं मेवाड के 69वें एकलिंग दीवान महाराणा सरदारसिंह की 225वीं जयन्ती सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्रों पर माल्यार्पण कर पूजा-अर्चना व मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया. वहीं पर्यटकों के लिए ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई.
महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, Udaipur के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि भाद्रपद कृष्ण की तृतीया को महाराणा प्रताप सिंह (द्वितीय) का जन्म वि.सं. 1781 एवं महाराणा सरदार सिंह का जन्म वि.सं. 1855 को हुआ था.
महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय: महाराणा जगतसिंह के देहान्त होने के बाद महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय को 5 जून 1751 को गद्दी पर बिठाया गया. उनकी माता मान कुंवर सोलंकी थी. महारणा प्रतापसिंह (द्वितीय) के सामन्त महाराणा के विरुद्ध होने से उनका शासन अस्थिर हो गया था. जिससे राज्य में अराजकता फैल गई. महाराणा ने अमरचंद बड़वा को ठाकुर की उपाधि देकर उन्हें दरबार में नियुक्त किया. महाराणा के शासनकाल के दौरान मराठों ने मेवाड़ पर कई बार छापे मारे. महाराणा आम जनता में सुधार लाना चाहते थे लेकिन उनका शासनकाल बहुत कम अवधि का रहा. और 10 जनवरी 1754 ई. को उनका देवलोक गमन हो गया.
महाराणा सरदारसिंह: महाराणा जवानसिंह के कोई पुत्र न था उनके देहान्त के बाद उत्तराधिकारी के संबंध में कई दिनों तक सामन्तों के बीच विवाद चला. कुछ सामन्त बागोर के महाराज शिवदानसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सरदारसिंह को गद्दी पर बैठाना चाहते थे. जबकि कुछ कंवर शार्दुल सिंह को बिठाना चाहते थे, जो सरदार सिंह के छोटे भाई शेर सिंह का पुत्र था. अंत में सलूम्बर के रावत पद्मसिंह तथा अन्य चूण्डावत सरदारों के परामर्श के बाद सरदासिंह को 7 सितम्बर 1838 ई. को महाराणा सरदार सिंह को मेवाड़ की गद्दी पर बिठाया गया. पोलीटिकल एजेन्ट स्पीयर्स ने इस निर्णय का स्वागत किया. महाराणा सरदारसिंह जब मेवाड़ की गद्दी पर सिंहासनारुढ़ हुए उस समय मेवाड़ की राजनीतिक व आर्थिक स्थिति काफी विषम थी.
1839 में भीलों और अन्य आदिवासी समूहों ने महाराणा के खिलाफ विद्रोह किया, विद्रोह को नियन्त्रित करने के लिए 1841 ईस्वी में मेंवाड़ भील कोर की स्थापना की गई और खेरवाड़ा को इस बल के मुख्यालय के रूप में स्थापित किया गया. महाराणा ने पिछोला झील के किनारे सरदार स्वरूप श्याम मन्दिर का निर्माण करवाया. 14 जुलाई 1842 को उनका निधन हो गया.
