जेकेके में दशहरा नाट्य उत्सव की शुरुआत:अभिनय के साथ अध्यात्म की बयार

जेकेके में दशहरा नाट्य उत्सव की शुरुआत:अभिनय के साथ अध्यात्म की बयार

jaipur, 20 अक्टूबर . जवाहर कला केन्द्र की ओर से अक्टूबर उमंग: लोक संस्कृति संग थीम पर आयोजित दशहरा नाट्य उत्सव की Friday को शानदार शुरुआत हुई. वरिष्ठ नाट्य निर्देशक अशोक राही के निर्देशन में हो रहे लोक नाट्य में कलाकारों ने महानायक राम की कहानी के विभिन्न प्रसंगों को मंच पर जीवंत किया. पहले दिन कुछ नए प्रसंग भी यहां साकार हुए. कलाकारों से आबाद रंगमंच, अनूठा लाइट संयोजन, मधुर संगीत की जाजम, बड़ी संख्या में दर्शक. कुछ ऐसा ही दृश्य मध्यवर्ती में दिखाई दिया.

रक्ष संस्कृति विस्तार को निकले दशानन

मधुर चौपाइयों की गूंज के साथ मंचन शुरू होता है. रक्ष संस्कृति के विस्तार की कामना लिए रावण, देवताओं के राजा इन्द्र से युद्ध करने पहुंचता है. राक्षस राज इन्द्र को परास्त कर उसे श्रीहीन कर देते हैं. रावण, विभीषण और कुंभकरण तपस्या कर ब्रह्मा से मन वांछित वरदान पाते हैं. रावण अपने ईष्ट शंकर की तपस्या में फिर लीन हो जाता है. इसी बीच शिव तांडव की प्रस्तुति माहौल को शिवमय कर देती है. शक्ति के मद में चूर रावण अब वेदमती को अपने अधीन करना चाहता है. वेदमती अगले जन्म में भूमिजा सीता के रूप में रावण के विनाश का कारण बनने का श्राप देती हैं. इसी तरह रावण रम्भा का तिरस्कार करता है और नलकूबर के श्राप का भागी बनता है. रावण अब लंका की ओर कूच करता है. कुबेर की नगरी लंका में भरतनाट्यम नृत्य की पेशकश के साथ राजमहल के वैभव को दर्शाया गया. कुबेर को परास्त कर रावण लंका हथिया लेता है.

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‘सरयू तट पर, इंद्रपुरी सी Ayodhya

‘वो इंद्रपुरी सी नगरी थी, जो बसी हुई सरयू तट पर, दशरथ सम्राट Ayodhya के देवों में प्रिय ऐसे नरवर.’ गीत के साथ दशरथ दरबार का दृश्य साकार होता है. पुत्रेष्टि यज्ञ का सुझाव देकर ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ की पुत्र प्राप्ति की चिंता का निवारण करते हैं. इस बीच राम जन्म का दृश्य देखकर सभी भाव-विभोर हो उठते हैं. ‘ठुमक-ठुमक चले रामचंद्र बाजत पैंजनियां’ गीत पर कथक की प्रस्तुति देख सभी आनंदित होते हैं.

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दशरथ हुए विकल

दरबार में पहुंचे ऋषि विश्वामित्र के वचन से राजा दशरथ विकल हो उठते हैं. पुत्र मोह को त्याग वे राम-लक्ष्मण को धर्मरक्षार्थ भेजते हैं. ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध कर राम अधर्मनाशी अभियान छेड़ देते हैं. इधर मिथिला में सीता स्वयंवर के दौरान विभिन्न राजाओं के किरदारों के जरिए विशिष्ट हास्य संयोजन किया गया. शिव धनुष भंग कर राम सिया को अपना बना लेते हैं. ऋषि परशुराम और लक्ष्मण के संवाद दरबार की गर्मी बढ़ा देते हैं. राम की शालीनता परशुराम का दिल जीत लेती है.

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जब तक है आकाश में चंद्र सूर्य की चाल

परशुराम के संवाद ‘जब तक है कैलाश पर शिव भूतनाथ का वास, जब तक है लक्ष्मी और विष्णु जी का साथ, जब तक है आकाश में चंद्र सूर्य की चाल, तब तक रहे इस धरा पर सियाराम का साथ’ के बाद पहले दिन के नाट्य का समापन होता है.