Udaipur : नि:संतानता से प्रभावित ज्यादातर महिलाओं को यह लगता है कि वे कभी मां नहीं बन पाएंगी, लेकिन आधुनिक तकनीकों के इस युग में सही समय पर एक्सपर्ट राय और उपचार लिया जाए तो मुश्किल समस्याओं में भी संतान प्राप्ति हो सकती है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है Alwar में, जहां 27 वर्षीय सलोनी (बदला हुआ नाम) को कभी माहवारी नहीं आने (एमेनोरिया) के बावजूद संतान सुख प्राप्त हुआ है.
सलोनी को पहली बार महावारी 15 वर्ष की उम्र में doctor द्वारा दवाइयां देने पर आयी थी. इसके बाद कभी प्राकृतिक रूप से पीरियड्स नहीं आए. इस मामले में प्राकृतिक रूप से गर्भधारण की संभावना बहुत कम होती है. दंपत्ति ने काफी प्रयासों के बाद असफल होने पर इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल में संपर्क किया, जहां आधुनिक आईवीएफ उपचार से सफलता मिल गयी.
इंदिरा आईवीएफ Alwar की सेंटर हेड डॉ. चारू जौहरी ने बताया कि सेंटर में अल्ट्रासाउंड जांच करने पर गर्भाशय छोटा दिखा और हार्मोन का स्तर बहुत कम पाया गया, जो हाइपो-हाइपो से संबंधित एक हार्मोनल स्थिति है और हर महीने ओव्यूलेशन या अंडों के मासिक रिलीज को रोकती है क्योंकि महिला के अंडाशय में अंडे विकसित होने में असमर्थ होते हैं. डॉ. जौहरी ने बताया कि हाइपो-हाइपो एक दुर्लभ लेकिन इलाज योग्य स्थिति है जो नि:संतानता का कारण बन सकती है. उचित परामर्श और समय पर उपचार के साथ, हाइपो-हाइपो वाली कई महिलाएं अपने स्वयं के अंडों से गर्भधारण करने में सक्षम होती हैं.
उपचार प्रोटोकॉल के तहत पहले गर्भाशय के आकार को बढ़ाकर सामान्य करने के लिए हार्मोनल रिप्लेसमेंट ट्रीटमेंट दिया गया. इसके बाद ओवरी को स्टीमुलेट और अंडे विकसित करने के लिए हार्मोनल इंजेक्शन दिए गए. इस केस में स्पेशल स्टीमुलेशन प्रोटोकॉल फोलो किया गया क्योंकि महिला में हार्मोन की कमी थी. मरीज को 14 इंजेक्शन देने के बाद अंडे तैयार हो गए और निकाल लिए गए, जिन्हें लैब में आईवीएफ प्रक्रिया से निषेचित करवाया गया. इससे बने अच्छी गुणवत्ता वाले दो ब्लास्टोसिस्ट भ्रूणों को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया गया. सफलतापूर्वक गर्भावस्था पूरी करने के बाद मरीज ने एक स्वस्थ संतान को जन्म दिया.
सलोनी और उनके पति इस सफलता से बहुत खुश हैं. उन्होंने कहा कि वे Doctors और इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की टीम को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने उन्हें मातृत्व का सुख दिया.