जीबीएच: कार्डियेक आईसीयू में गर्भवती की डिलीवरी करा बचाई जान


Udaipur. हार्ट फेल्योर होने पर बेडवास स्थित जीबीएच जनरल हॉस्पीटल में गर्भवती का इलाज करते हुए नार्मल डिलीवरी कराई गई. हैरत की बात यह रही कि जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरा बना हुआ था, लेकिन डॉक्टर्स की टीम ने दोनों को सुरक्षित बचाते हुए कार्डियेक आईसीयू में ही डिलीवरी कराई.

हुआ यूं कि भागूदेवी (30) निवासीJaloreको पिछले दिनों श्वास लेने में लगातार तकलीफ हो रही थी. महिला सात माह की गर्भवती थी. परिजन उन्हें नजदीक के अस्पताल ले गए, लेकिन कोई राहत नहीं मिलने और हालत लगातार बिगड़ने पर उन्हें पूरे रास्ते Ambulances में आक्सीजन देते हुए बेडवास स्थित जीबीएच जनरल हॉस्पीटल की Emergency में लाया गया. स्त्री रोग विभाग में डॉ. पायल जैन को बुलाया गया. इस समय गर्भवती का आक्सीजन लेवल सिर्फ अस्सी प्रतिशत पाया गया. यह जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरा था. ईसीजी में हार्ट फेल्योर के लक्षण मिलने पर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डैनी मंगलानी को Emergency में बुलाया गया. उन्हें कार्डियेक आईसीयू में शिफ्ट किया गया और वेंटीलेटर पर रखकर नार्मल डिलीवरी कराई गई.

  दो दिन में सात ज्वाइंट रिप्लेसमेंट

कृत्रिम लेबर रूम तैयार कर कराया प्रसव

प्रसव पीड़ा होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पायल जैन, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अविनाश बोथरा, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डैनी मंगलानी ने टीम वर्क से निर्णय लिया कि गर्भवती को वेंटीलेटर से लेबर रूम में शिफ्ट करने में खतरा था. इस पर कार्डियेक आईसीयू में ही लेबर रूम स्टाफ की मदद से कृतिम लेबर रूम सेटअप तैयार कर नार्मल डिलीवरी कराई गई.

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38 दिन आईसीयू में रहा नवजात

बच्ची समय पूर्व होने और कमजोर होने से फेफड़े कमजोर थे. बार-बार श्वास रूक रही थी. दूध पीने पर उल्टी हो रही थी और पेट फुल जाता था. बच्ची का वजन भी सिर्फ एक किलो था. इस पर उसे नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अविनाश बोथरा व टीम की निगरानी में एनआईसीयू में शिफ्ट किया गया और 38 दिन तक उपचार के बाद वजन डेढ़ किलो पाया गया. उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

क्यों हुई महिला को तकलीफ

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डैनी मंगलानी ने बताया कि गर्भावस्था में होर्मोन बदलाव की वजह से कई बाद ह्दय कमजोर हो जाता है. इसी स्थिति में गर्भवती के पहुंचने पर ऑक्सीजन लेवल सिर्फ अस्सी प्रतिशत रह गया था. महिला का ह्दय सिर्फ दस प्रतिशत काम कर रहा था. यह स्थिति कई बार खतरनाक साबित होती है. जिसे मेडिकल साइंस में पैरीपार्टम कार्डियोमेयोपैथी कहा जाता है. प्रसव के बाद महिला का इलाज जारी रखते हुए ह्दय की पंपिंग 25 प्रतिशत तक पहुंचाई गई. उसके बाद वेंटीलेटर हटाकर दवाईयों से ह्दय का इलाज किया जा रहा है. बिना किसी प्रक्रिया या ऑपरेशन के ह्दय की पंपिंग सुचारू होने पर डिस्चार्ज कर दिया गया.

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