बीएचयू की दंत चिकित्सा कार्यशाला में दांतों को बदलने के लिए विभिन्न तकनीकों पर चर्चा

 फोटो प्रतीक

Varanasi , 19 अप्रैल (Udaipur Kiran) . काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) चिकित्सा विज्ञान संस्थान के दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय में Saturday से पांच दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत होगी. कार्यशाला का उद्घाटन सुबह 09 बजे से होगा. कार्यशाला में बीएचयू सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आए दंत चिकित्सक को दांतों को बदलने के आधुनिक तरीकों से रूबरू कराया जाएगा.

कार्यशाला के संयोजक और विभागाध्यक्ष के अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों में ईडेंटुलिज्म एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है. भारत में ईडेंटुलिज़्म की व्यापकता 25 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए 60 से 69 फीसद तक भिन्न होती है. पिछले कुछ दशकों के दौरान बेहतर स्वास्थ्य जागरूकता और सेवाओं के कारण प्रवृत्ति में गिरावट आ रही है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, निकले हुए दांतों की संख्या भी बढ़ती है. दंत क्षय और पीरियडोंटाइटिस के साथ-साथ उम्र से संबंधित बूढ़ा और अपक्षयी परिवर्तनों के कारण भी निकले हुए दांतों की संख्या बढ़ जाती है. जैविक दृष्टिकोण से एक प्रत्यारोपण के साथ एक निकले हुए दांत का प्रतिस्थापन एक बेहतर साधन है. इसमें जबड़े की हड्डी में पतला पेंच डाला जाता है और इम्प्लांट के ऊपर से एक क्राउन जोड़ा जाता है. यह कमोबेश प्राकृतिक दांत की तरह काम करता है. यह अपेक्षाकृत नया उपकरण है और पुराने फिक्स पार्शियल डेंचर की तुलना में बहुत बेहतर है जिसमें निकले गए दांत के दोनों ओर स्वस्थ निर्दोष स्वस्थ दांतों को घिस कर ब्रिज किया जाता है. इससे उन्हें क्षरण और पीरियडोंटाइटिस का खतरा होता है. इसके अलावा, इन छंटनी किए गए दांतों काे निकलने के कारण स्पैन में वृद्धि के कारण स्थिति को और भी कठिन बना देता है. दूसरी ओर, प्रत्यारोपण पूर्ण डेन्चर को भी स्थिर करने में काफी सहायक होते हैं जो अन्यथा कोई सहारा न मिलने के कारण अपनी स्थिति में दृढ़ और स्थिर नहीं हो सकते हैं. प्रत्यारोपण चबाने की क्षमता में सुधार और लंबी अवधि के लिए हड्डी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में अधिक कुशल साबित हुए हैं.

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(Udaipur Kiran) /श्रीधर/दिलीप

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