jaipur, 15 नवंबर . राजनीति के लिहाज से Rajasthan जाट प्रभाव वाला प्रदेश माना जाता है. Rajasthan में राजनीति की बात करें और जाटों का जिक्र ना हो ऐसा मुमकिन नहीं है. परसराम मदेरणा और शीशराम ओला जैसे प्रथम श्रेणी के नेताओं से लेकर आज तक अनगिनत जाट नेताओं ने अपनी काबिलियत और सूझबूझ से Rajasthan की राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है. अगर राजनीतिक पार्टियों की बात करें तो कांग्रेस बीजेपी में जाटों का समान रूप से वर्चस्व रहा है, लेकिन विशेष रूप से कांग्रेस से जाटों का जुड़ाव रहा है, लेकिन अब जाटों का कांग्रेस से मोहभंग होता दिखाई दे रहा है, खुलकर सामने आई नाराजगी इसकी वजह बताई जा रही है. हालांकि कांग्रेस ने जाटों की नाराजगी को डैमेज कंट्रोल करने के लिए बड़े पैमाने में जाट समाज को टिकट दिए है लेकिन फिर भी कांग्रेस पर से जाटों का आशीर्वाद नहीं मिलता दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर देखना यह है की कांग्रेस जाट नेताओं की नाराजगी को दूर करके कैसे चुनाव में उन्हें अपने खेमे में ला सकती है. वर्तमान हालात देखकर तो यही लगता है कि जाट इस बार प्रदेश की चुनावी हवा बदलने के मूड में हैं.
जाट नेताओं का वर्चस्व खत्म करने का आरोप
राजनीतिक गलियारों में कहीं न कहीं इस बात की चर्चा रहती है कि कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत जात नेताओं का वर्चस्व खत्म करने की कोशिश की है. Chief Minister Ashok Gehlot को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है. परसराम मदेरणा, महिपाल मदेरणा, शीशराम ओला जैसे शीर्ष उदाहरण दिए जाते हैं. वहीं हाल ही में महिपाल मदेरणा की बेटी और विधायक दिव्या मदेरणा की नाराजगी ने भी जाटों पर गहरा असर डाला है जिससे आगामी Assembly Elections में कांग्रेस को मुश्किल हो सकती है, हालांकि कांग्रेस के ही बड़े जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा कांग्रेस और Ashok Gehlot की पहली पसंद हैं लेकिन फिर भी जाटों पर वो अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब बार नहीं आते.
Rajasthan में 14 फीसदी आबादी वाला सबसे बड़ा वोटर
सभी राजनीतिक पार्टियां राजाथन में सत्ता के लिए जाटों पर निशाना साधा है क्योंकि जनसंख्या के लिहाज जाट करीब 14 फीसदी है. कांग्रेस और बीजेपी सबसे बड़ा वोट Bank माना जाता है. कांग्रेस और बीजेपी ने दोनों ही दलों ने सबसे ज्यादा जाटों को ही उम्मीदवार बनाया है. 2018 में जाटों के 33 उम्मीदवार चुनाव जीते.
कांग्रेस ने दोनों बार नहीं बनाया जाट मुख्यमंत्री
वहीं जाट मुखमंत्री बनाने की मांग को हवा देकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल और जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील इस मुद्दे को हवा देने में जुटे हैं. बेनीवाल और मील का कहना है कि कांग्रेस सरकार में दो बार जाट सीएम बनने का मौका मिला लेकिन Ashok Gehlot सीएम बन गए.
बेनीवाल की रणनीति से कांग्रेस हलकान
हनुमान बेनीवाल के एक रणनीति के तहत जाटों को कांग्रेस से दूर करने के लिए Nagaur , Jodhpur , बाड़मेर, Jaisalmer , Sikar, churu, हनुमानगढ़, झुंझुंनू व Shri Ganga Nagar जिलों में खुद को जाटों का शुभचिंतक बताते हुए पंचायतों में जाट सीएम और जाट का वोट जाट को देने की अपील करते हुए अभियान चला रखा है जो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर रहा है.
सैनी